Monika garg

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लेखनी कहानी -14-Nov-2022# यादों के झरोखों से # मेरी यादों की सखी डायरी के साथ

हैलो सखी ,
          कैसी हो । दिन अच्छे गुजर रहे है ना।हर रोज मेरे मन मस्तिष्क मे क्या चल रहा है ये जान ही लेती हो।
 होली के दिन नजदीक आती जा रहे थी। और मेरे मन मस्तिष्क में सालों पुराना डर बैठा हुआ है जो निकलता ही नही कभी ।खासकर फाग वाले दिन तो ये बहुत बढ़ जाता है । बच्चों को बार बार चेक करती रहती हूं वो ठीक तो है ना।
 
 हम होली पर ज्यादा रंग गुलाल नही खेलते बस बच्चे लोग हुडदंग मचाते है होली पर पता नही क्यों मुझे गुलाल से होली खेलना अच्छा लगता है और दूसरे ऱंगों से नही जैसे हमारे यहां पक्के रंग ,कोढिया रंग,होते है ।उससे तो कोई दूसरा भी खेलता है तो मुझे डर लगना शुरु हो जाता है।इसके पीछे भी एक घटना है जो मेरे मन मस्तिष्क से कभी निकल ही नहीं सकती।
  बात तब की है जब मै आठ नो साल की थी मेरे चाचा का परिवार लखनऊ से होली के दिनों में आया हुआ था।मेरे चाचा मेरी मम्मी से बहुत छोटे थे। तकरीबन चौदह साल ।फाग वाले दिन मम्मी किचन मे बैठी अंगीठी पर कुछ विशेष हलवा बना रही थी मम्मी के साथ चाचाजी ने कभी होली नही खेली कहते थे ये भाभी तो मां जैसी है। मम्मी को तो दूर दूर तक भी गुमान नही था कि चाचा कोड़ियां ऱग गिलास मे घोल कर रसोई घर के दरवाजे पर खड़े थे।पता नही चाचा को क्या सूझी मम्मी ने यही पूछा,"हां देवर कुछ चाहिए ‌"बस मम्मी का इतना कहना था चाचा ने मम्मी के मुंह पर ही वो गिलास का रंग छपाक से फेंक दिया और जोर से बोले "होली है" ये देखा ही नहीं मम्मी दर्द से छटपटा रही थी। क्यों कि आंखों मे बहुत सारा कोड़ियां ऱग चला गया था। मम्मी को तुरंत अस्पताल ले गये आईसीयू में सात दिन रही मम्मी और अब भी एक आंख से कम ही दिखाई देता है।तो मै इसलिए डरती हूं ।

मुझे याद है एक बार होली के आसपास ही राधा कृष्ण का रास नाम से कीर्तन हुआ था हमारी सोसायटी मे एक मंदिर है वहां हम सब ने मिलकर वृंदावन से कलाकार बुलाएं थे।सच मानो सखी उस फाग से सुंदर फाग मैंने आजतक नही खेला। पीले रंग की फूलों की पतियों मे गुलाब की पंखुड़ियां मिलाई गयी थी उस मे इत्र छिड़का गया था।और उसी से क्या राधा क्या कृष्ण और क्या हम सब रंगों से रंग गये थे।एक मानसिक शांति मिली वो अलग से।तभी से मेरे मन मे वृंदावन की होली और बरसाने की होली देखने का चाव सा बना हुआ था।मेरे मन मे वही छवि समायी हुई थी जो मैने सालों पहले उस कीर्तन में देखी थी सोच रही थी कि असलियत मे वृंदावन की होली क्या खूब होगी।
  पर पतिदेव ने सारे अरमानों पर पानी फेर दिया बोले तुम्हें पता भी है वहां कितनी भीड़ होती है लोग इतना इतना गुलाल और पानी फेंकते है कि तुम सांस भी नही ले पाओगी।पहले ही तुम्हारी तबियत खराब है।बस तुम धीरे धीरे होली के लिए पकवान बना लो।
 धुलंडी के बाद हमारा शायद खाटूश्यामजी जाने का प्रोग्राम था। फिर बच्चों के पेपर चल रहे थे तो वृंदावन जाना स्थगित हो गया।पर मुझे पता है अगर मेरे बांके बिहारी चाहेंगे तो कभी ना कभी तो होली पर उनके दर्शन होंगे ही अब चलती हूं अलविदा।

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3 Comments

Gunjan Kamal

06-Dec-2022 02:56 PM

शानदार

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Khan

29-Nov-2022 08:07 PM

Nice 👌🌺

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